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ज़िन्दगी की राह म...क ु छ इस तरह फिसऱ गया
ें
चीख मेरी कविता बन कर.. ददऱ से य ॉ ननकऱ गया
कवि बनकर बा अदब .. ददऱ को बहत समझाया है
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एक ना माना ददऱ मेरा.. आज कऱम अपनाया ह
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लऱख कर क ु छ उऱ जऱ ऱ, ददऱ को बस समझाया ह
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आदत सी हो गई अब तो, जब भी..ददऱ को परशाॊ पाया ह
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कतरा कतरा कागि पर लऱख कर ददऱ को फिर बहऱाया ह
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