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एक कविता लऱख रहा हॉ
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ज़िन्दगी क क ु छ अनुभि कागि को द रहा हॉ
मन का कहा मान, आज एक कविता लऱख रहा हॉ
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रात और ददन हमार काऱ सफ़द मोहर हैं
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ज़िन्दगी की बिसात पर सतरज खऱ रहा हॉ
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सह और मात स िच िच कर
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रत सी फिसऱती ज़िन्दगी झेऱ रहा हॉ
यह सच ह , आज एक कविता लऱख रहा हॉ
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ज़िन्दगी न िहत क ु छ ददया.. पर
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मरी क ु छ भािनाओॊ को.. ऱुटा भी ह
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क ु छ ख़ुशी क ददए ह पऱ .. पर
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क ु छ दुुःख क आॊस स... ददऱ ट ुटा भी ह
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आज उन ऱम्हों का दहसाि ऱगा रहा हॉ
हा,.. आज मैं एक कविता लऱख रहा हॉ
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कभी अपनों ने जऱाया.. कभी खुद भी जऱा हॉ
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अपन घाि पर खुद ही ..मऱहम ऱगा रहा हॉ
आप को अपने िो.... घाि गगना रहा हॉ
हाॉ .. आज मैं एक कविता लऱख रहा हॉ
...................एक कविता लऱख रहा हॉ ..