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P. 9

एक कविता लऱख रहा हॉ


                                                                         े
                                                                                                                  े
                                                            ज़िन्दगी क क ु छ  अनुभि  कागि को  द रहा हॉ

                                                            मन का कहा मान,  आज एक कविता लऱख रहा हॉ


                                                                                                   े
                                                            रात और ददन हमार काऱ सफ़द मोहर हैं
                                                                                             े
                                                                                                             े
                                                                                     े
                                                                                                        े
                                                            ज़िन्दगी की बिसात पर सतरज खऱ रहा हॉ
                                                                                                 ॊ

                                                             सह और मात स िच िच  कर
                                                                                   े
                                                             े
                                                            रत सी फिसऱती ज़िन्दगी झेऱ रहा हॉ

                                                            यह सच ह , आज एक कविता लऱख रहा हॉ
                                                                         ै


                                                            ज़िन्दगी न िहत क ु छ ददया.. पर
                                                                          े
                                                                               ु
                                                            मरी क ु छ भािनाओॊ को.. ऱुटा  भी ह
                                                                                                           ै
                                                              े
                                                                                      ै
                                                                            े
                                                            क ु छ ख़ुशी क ददए ह  पऱ .. पर
                                                                                                                   ै
                                                             क ु छ दुुःख क आॊस   स... ददऱ ट ुटा भी ह
                                                                             े
                                                                                           े
                                                            आज  उन ऱम्हों का  दहसाि ऱगा रहा हॉ

                                                            हा,.. आज मैं  एक कविता लऱख रहा हॉ
                                                               ॊ


                                                            कभी अपनों  ने जऱाया.. कभी खुद भी जऱा हॉ

                                                                   े
                                                            अपन घाि पर खुद ही ..मऱहम ऱगा रहा हॉ

                                                            आप को अपने िो.... घाि गगना रहा हॉ

                                                             हाॉ .. आज  मैं  एक कविता लऱख रहा हॉ

                                                            ...................एक  कविता लऱख रहा हॉ ..
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