Page 4 - my poem 2
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मेरी ज़ िंदगी



                                     बहत हआ ज़िन्दगी, अब तू  मेरी सुनेगी..
                                         ु
                                               ु

                                     कितनो ने ददए घाव, अब तू नही गगनेगी,



                                      रोि तू  ऱड़ेगी,..दुननया से नही डरगी...
                                                                                      े


                                                               ें
                                                  े
                                     दुननया ि भीड़ म..अऱग  पहचान बनेगी,

                                                                     े
                                     गगर िर जब किर उठगी, तभी  िामयाबी ममऱगी..
                                                                                                      े


                                     बहत हआ ज़िन्दगी..अब  तू  मेरी सुनेगी..
                                               ु
                                         ु

                                     कितनों ने ददए घाव..अब तू नही गगनेगी...



                                                                                 ...ववजय वमाा
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