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                                                                                                                                                                                          अभिव्यक्ति
                                                                                                                                                                                                                 कम्ष को उच् कहे,
                                                                                                                                                                                                               धम्ष-वण्ष िे मान बढे।
                           बुढ़ापा                                                                                                                                    सविमुिी                                 सवद्ा िव्षर्ा उप्ुक्त हो,

                                                                                                                                                                     िमार्                                   पर अंको िे पहचान करे।
             उम्र गुज़र र्ाने के बाद,                                                                                                                                                                        अहहंिा र्नसहत के सलए हो,
             वो दद्ष िहने लगे है,                                                                                                                                                                          पर र्न करी िुरक्ा हहंिा िे हो।
             आसिर क्ों लोग बुढ़ापे में,                                                                                                                                                                          प्रेम को गलत कहो,
             तनहा रहने लगे है .....                                                                                                                                                                             मातृप्रेम िब मे हो।

                                                                                                                                                                                                            अपना दुशमन िब िे गलत,
             उनहोंने िोचा बहुत ,                                                                                                                                                                              दुशमन का दुशमन दोसत।
             बच्ों के कल के बारे में,                                                                                                                                                                           डरते नही बंदूक िे,
             र्ब उनकरी बारी आ्ी ,                                                                                                                                                                               डरते है िच्ाई िे।
             तो बच्े िुद करी िोच रहे है ,                                                                                                                                                                     आलस् िब िे हराम है,
             आसिर क्ों लोग बुढ़ापे में ,                                                                                                                                                                    असवषकार करी र्ननी आराम है।
             बेिहारा होने लगे हैं.....                                                                                                                                                                        िंतोर िे बड़ा कुछ नही,

                                                                                                                                                                                                             और रोर है िबके मन मे।
             उनहोंने देि भाल करी ,                                                                                                                                                                            िबका मासलक एक है,
             िारी उम्र तुमहारी ,                                                                                                                                                                              और धम्ष िबके अनेक है।
             अब तुमहारी बारी है देि भाल करने करी ,                                                                                                                                                              िौंद््षपूण्ष हम नही,
             लेदकन मुझे िमझता नहीं ,                                                                                                                                                                          और आईना ही गलत है।
             आसिर क्ों लोग बुढ़ापे में ,                                                                                                                                                                       िीता है िबिे पसवत् ,
             उनिे दूर होने लगे हैं......                                                                                                                                                                     दफर द्रौपदी क्ो अपसवत्।
                                                                                                                                                                        अंदकता चरौरसि्ा,                    शक हो िुद पर िमार् का,
             उनहोंने हमे बहुत प्ार दद्ा ,                                                                                                                          तृती् वर्ष बी. कॉम  (ए )                 क्ा हो सविमुिी  िमार् का?
             हमारी तरफ आने वाली,
             हर परेशासन्ों का रुि मोड़ दद्ा ,
             अब उनकरी आँिों िे आंिू बरिने लगे हैं ,
             आसिर क्ों लोग बुढ़ापे में ,
             उि प्ार के सलए तरिने लगे हैं .....                                                                                    माँ


             उनकरी उम्र बीत ग्ी ,
             तुमहारे ख्ाल में ,
             अब बि वो र्ीना चाहते हैं ,                                                                                            घुटनों िे रेंगते –रेंगते,,कब पैरों पर िड़ा हुआ,
             अपनों के प्ार में ,                                                                                                   तेरी ममता करी छWव में,,र्ाने कब बड़ा हुआ।
             वो र्ब िे तुम िे दूर रहने लगे हैं ,
             प्ार को पता नहीं ,                                                                                                    काला टीका दूध मलाई,आर् भी िब कुछ वैिा है,
             बि ददल करी बात , ददल में लेकर ,                                                                                       मैं ही मैं हँ हर र्गह,प्ार ्े तेरा कैिा है।
             अकेले होकर वोरो ने लगे हैं ....|
                                                                                                                                   िीधा िाधा भोला – भाला,,मैं ही िबिे अचछा हँ,
                                                                                                                                   दकतना भी हो र्ाऊँ  बड़ा, “माँ” मैं आर् भी तेरा बच्ा हँ।






                    मेहर्बीन शैख़,                                                                                                              धममेनदर हिंह.
                    सविती् वर्ष बी. कॉम (ए)                                                                                                    सविती् वर्ष बी.ए


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