Page 89 - Synergy 17-18
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                                                              अभिव्यक्ति










                               कशमकश िी है मेरी सज़नदगी |








                                                 एक कशमकश िी है हर्ंदगी मेरी

                                           किमो< करी  र्ंर्ीरों िे सलपटी हुई है रूह मेरी

                                                   ददल तो तेरा है ्े र्ानता हँ

                                             तुझे देिें सबना ना रह पाऊं गा...मानता हँ

                                    हाँ  र्ानता हँ... करी तेरी  तेरे बWहों में िुकून िा समलता है मुझे

                                         तुझे देि के तुझे पाने का र्ुनून िा र्गता है मुझमे<

                                                             पर

                                                         ्ाद है ना...

                                                 एक कशमकश िी है हर्ंदगी मेरी

                                            किमो< करी र्ंर्ीरों िे सलपटी हुई है रूह मेरी

                                      र्ाने क्ों आर् भी तेरी आँिों में डूब र्ाने को र्ी करता है

                                            तेरी बाहों में सलपट के रोने को र्ी कहता है




                                          नही कमर्ोर हँ इतना दक टूट र्ाऊं  तुझे देिते ही

                                          पर न र्ाने क्ों तुझे देिके टूटने को र्ी करता है




                                                       लेदकन क्ा करूँ

                                                 एक कशमकश िी है हर्ंदगी मेरी

                                            किमो< करी र्ंर्ीरों िे सलपटी हुई है रूह मेरी







                    मुसतफा अंिारी,
                    सविती् वर्ष बी.Eि.िी. आ्टी


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