Page 92 - Synergy 17-18
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                                          क्ों तू िो रहा है                                                                                                                              अभिव्यक्ति


                                                                                                                                                                    आबादी और बबा्षदी



                                                                                                                                                                               लोग हैं, पर भोग नहीं।
                                                                                                                                                                              कल तो है, पर र्ल नहीं।
                                         क्ों तू िो रहा है, उठ िवेरा हो रहा है।
                                                                                                                                                                          कंधे तो दो हैं, पर उन में बल नहीं।
                                  िो्ेगा तो िोता ही रह र्ा्ेगा, उठ नही तो कुछ नही                                                                                        चलना तो है, पर चलने को र्ल नहीं।
                                                        पा्ेगा।
                                         क्ों तू िो रहा है, उठ िवेरा हो रहा है।                                                                                            ननही आँिों में अर्ीब िी नमी है।
                                                                                                                                                                         माँग तो बहुत है, पर अन्न करी कमी है।

                                    इि अनमोल हर्ंदगी को, िोते ही नही< सबताना है।                                                                                     र्रूरत दवाई्ों करी र्ीं, पर दवाइ्ाँ ितम र्ी।
                                  आए हैं इि दुसन्ा में तो, कुछ कर के ही ददिलाना है                                                                                    दवाइ्ों करी कतार में दफर अमीरी प्रर्म र्ी।
                                         क्ों तू िो रहा है, उठ िवेरा हो रहा है।                                                                                         माँग सशक्ा करी र्ी, कोई सभक्ा दे ग्ा।
                                                                                                                                                                    आर् दफर दकिी सनभ्ष्ा करी कोई पररक्ा ले ग्ा।
                                             िो्ेगा तो िोते ही रह र्ा्ेगा,                                                                                        अब तो उनहें भी समल गई “हम दो हमारे दो” करी िीि।
                                     उठ नही< तो दकसमत का सलिा भी िो र्ाएगा।                                                                                       र्ब घर करी छोटी बेटी ने भी माँग ली मरौत करी भीि।
                                       र्ो िम् बीत ग्ा, वह कभी नही आएगा।                                                                                                 भीि माँग न िका तो काम  माँगा र्ा।
                                         क्ों तू िो रहा है, उठ िवेरा हो रहा है।                                                                                       अपनी मेहनत के दम पर एक नाम माँगा र्ा।


                                                                                                                                                                    ग़रीबी, असशक्ा, बेरोर्गारी का कारण है आबादी
                               माना मंसर्ल मुसशकल है, मगर क्ों तू सहममत छोड़ रहा है।                                                                                   िमझोगे कब? र्ब बहुत देर हो र्ाएगी तब।
                              पल में ही िफलता समलती नही, उममीद क्ों तू छोड़ रहा है।
                                         क्ों तू िो रहा है, उठ िवेरा हो रहा है।                                                                                 एक बार र्ो ्ह बढ़ गई, तो इि का कोई ईलाज़ न होगा।
                                                                                                                                                                         तब र्ो ्ह करना चाहेंगी वही होगा।

                                                                                                                                                                        भूल हुई है तुमिे, इि पर वसचार करो।
                                      माना तेरी हर्ंदगी में, अंधेरा घनघोर रहा है।                                                                                       अभी वक़्त है ,िोंचो िमझों िुधार करो।
                               ्ह अंधकार भी समट र्ाएगा, कोसशश क्ों तू छोड़ रहा है ?
                                         क्ों तू िो रहा है,उठ िवेरा हो रहा है।


                                    रासता है मुसशकल अगर, क्ों तू इिे छोड़ रहा है।
                                    आर् के ्ुग में इंिान, िुदकरी तक़दीर मोड़ रहा है।
                                         क्ों तू िो रहा है, उठ िवेरा हो रहा है।



                                         क्ों तू िो रहा है, उठ िवेरा हो रहा है।















                      राहुल शमा्ष                                                                                                               पवन पांडे.

                      सविती् वर्ष बी.कॉम                                                                                                       प्रर्म वर्ष बी.एम्.एम्



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