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मर दश का ककसान
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जो लह पसीन स बजर धरती को जगाता ह ,
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दिन भर करता ह काम सिा,बन कममवीर दिखलाता ह,
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सिी गमी बरसात म भी ,तन को भी न ढक पाता ह,
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कहलाता ह अन्निाता ,खुि रुखा सूखा खाता ह,
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सूरज क जागन स पहल,चारपाई वो छोड़ उठ जाता है,
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डटकर महनत दिनभर करता ,पर थककर नह ं बैठता ह,
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जन-जीवन क िुुःख को हरकर ,कष्टमय जीवन बबताता ह,
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ववश्राम नह ं करता दिनभर , हँसकर गम पी जाता ह ,
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जो भी बनता अपने श्रम से औरों क ललए कर जाता ह,
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अमृत कण अन्न उगाकर , जीवन अपमण कर जाता ह,
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धरती क लोगों को िकर , क ु छ भी नह खुि को बचा पाता ह ै
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बंजर धरती तक को सींच सींच , हररयाल उस पर लाता ह ै
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वो नमन पात्र कहलाकर भी, अलभनय का पाठ लसखाता ह,
कोदट कोदट नमन अंतर ह्रिय से ,युग पुरुष ऱूप अपनाता है|
वैभवी शमाम
सात ‘अ’

