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भशऺक से अनुयोध
फीसिीॊ सदी का हय गुज़यता हआ सार
ु
ऩूछता है कई-कई सिार
ऩूछता है फच्चों से क्मा हार है ऩीठ का
रादा है जजसऩय फस्ता कौंक्रीट सा
ऩूछता है भशऺकों से जो ऩढ़ाते हैं ककताफ
जोड़ोगे कफ तक फस अॊकों के ह हसाफ
ऩूछता है देश भें फदरती सयकायों से
सजाओगे कफ तक स्क ू रों को
फस कागज़ के प ू रों से
मे फच्चे हैं
हरयमारे अॊक ु य हैं
फढ्ने को आतुय हैं
नन्द्ही सी धड़कन भें गीतों के सुय हैं
ऩीठ को इनकी सहराओ ऩॊखों से
आॉखों को यॊगने दो सऩनों की क ू ची स
गाने दो गीतों को बॉियों के सा थ-साथ
झूभने दो ऩैयों को र्ततरी के आस-ऩास
साॉसों को गॊध दो, गीतों को छॊद दो
यचना क र्नझिय को दो उभड़ने का सभुल्रास
सिार हो उनका कोई ,सीधा मा अटऩटा
उत्तय की हदशा के अ फ खोरो सफ कऩाट !
प्रर्तबा ऩाध्मे
स्नातकोत्तय भशक्षऺका –हहन्द्दी

