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        जन-जन भें कयता भशऺा का प्रसाय


        छात्रों भें बयता उत्साह का सॊचाय,

        जजनभें ऩरयऩूरयत है सदाचाय,

        मे जो के . वि. है भेया, फड़ा न्द्माया, फड़ा प्माया |


        मे जो के . वि. है भेया, फड़ा न्द्माया, फड़ा प्माया ||






        यचनाकाय – आशीष क ु भाय भसॊह


        ( प्र.स्ना.भशऺक ‘सॊस्क ृ त’)




                                                    नन्द्हा फचऩन




        प्माय प ू रों की तयह अऩनी सुगॊध


        पै राता हैं चायों ओय, इस धयती ऩय

        भाॊगते नहीॊ क ु छ बी,भसपि  फाटते आनॊद

        खुभशमा भभरती जफ देखती हॉ भुस्कान
                                         ू

        नन्द्ही कभरमों जैसे चेहेये ऩय खखरता फचऩन

        चहक उठे,दौड़े, कपय गगय ऩड़े,फड़ाती हाथ

        उसे उठाने,कोभर स्ऩशि उसका छोड़ता न साथ


        जफ देखती हॉ उन्द्हे ऩयेशान, सोचती हॉ,उन ऩय
                       ू
                                                  ू
        कमा फोझ डारा भैंने ही न सभझकय?


        उन्द्हे तो हैं ऩूया अगधकाय कक भभरे उन्द्हे भेया प्माय

        आखखय िे सबी तो हैं हभाया उत्तयागधकाय


        छोटे छोटे स्िऩने चाहटें भैं भभटा न सकी

        आखों भें झरकती कबी कबी थकी

        हई नजयें, भैं तो चाहती हॉ िे नाचे,गाए
          ु
                                     ू
        चॊचर ऩैय कबी न रुके ,प ू रों की टयह भुस्क ु याए
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