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इस फाग ऩय छा जाए रेकय अनॊत आशाएॉ
उनका हो एक प्रदीप्त स्प ु यण
देखकय खुभशमों भें झूभ उठे भेया भन
श्रीभती शुभ्रा दत्ता चौधुयी
प्राथभभक भशक्षऺका
फदरो अऩनी सोच !
य को क ु छ
कर याबत मार भेये भन बें आ,ए
नयाशा बी राए !
सॊग अऩने क ु छ गचॊता औय य
दुय नक मह ढ ूॉढ यहे ह ैं
नमा के िैऻाय
कक भॊगर ऩय जज़ॊदगी है बी मा नह ीॊ
ऩय आदभी मह नहीॊ ढ ूॉढ यह ा
कक जज़ॊदगी बें खुशी है बी मा नही ॊ
मादा रोगों को य
आज अऩने से ज़ नजीि चीजो की चाह, ह ै
धन-दौरत,ऐचिमि ही आजकर जज़ॊदगी की याह ह|ै
याहों भें भभरने ऩयाज कोई हॉस-खखरकय फात नहीॊ कयत ा
स न है यखत| ा
भाटिपोन औय आईऩैड भे अऩने-आऩ को भग
फूढ़े दादा-दाहदभों के के न ही
यभ ही उनकी दुय
घय के िृद्धाश नमा है फन यह ी !
ऐसे माॊबत
यक सभाज भें
क मा आतभ -ऻान,आतभ -िवचिास,आतभ -ऩरयचम है ककसी को?

